मेनोस रबड़ में आने वाली अचानक तेजी के एक जीवित स्मारक के रूप में खड़ा है।
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वे एक ऐसे अभिनेता है जो अपने प्रशंसकों के लिए जीवित स्मारक जैसे हैं लेकिन यह सब उन्होंने एक दिन में नहीं पाया।
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हवाओं के रुख को अपनी साँसों से जो बदल दे सूर्या के तेज को जो मूह खोल के निगल दे कर्म, परित्याग और सद्भावना का जो हो प्रतीक जिसका लक्ष्य प्रगति हो और हो निशाना सटीक लौह स्तम्भ सा खड़ा हो जो अपनी प्रतिज्ञां पे जिसे पुरुषार्थ से न हो भय ना हो हार की लज्जा जो प्रसन्न हो धोती मात्र में नहीं भाती जिसे रूप सज्जा ऐसा चहुंमुखी दूरदृष्टि का हो जो धारक जो हो अपने राज्य का जीवित स्मारक जिसका ह्रदय हो इतना विराट केवल वह ही कहलाये सम्राट